मुझ को डर है कहीं ऐसा दिल-ए-नाकाम न हो इश्क़ आग़ाज़ ही आग़ाज़ हो अंजाम न हो गर्दिश-ए-जाम तो हो गर्दिश-ए-अय्याम न हो ये कोई बात हुई सुब्ह तो हो शाम न हो दामन-ए-शाम की रंगीन फ़ज़ाओ देखो कोई आशुफ़्ता-सर-ए-हुस्न सर-ए-बाम न हो कर दिया क्या ये मिरे ज़ौक़-ए-तलब ने मुझ को नाम पर तेरे गुमाँ है कि मिरा नाम न हो ख़ुद-नुमाई के करम हद से सिवा हैं 'शादाँ' अब मिरा शौक़ कहीं मोरिद-ए-इल्ज़ाम न हो