मुझ को होती थी आगही तन्हा कि अंधेरे में रौशनी तन्हा सहन में मातमी लिबादे हैं लाश कमरे में है पड़ी तन्हा शहर के बीच लग गया कतबा जल गई एक झोंपड़ी तन्हा उस को तन्हाई मार डालेगी रह गया जो भी आदमी तन्हा बारिशों में वो खेलती लड़की आज ज़ीने पे रो पड़ी तन्हा सुर्ख़ आँखें बता रहीं 'आरिब' रात वो जागती रही तन्हा