मुझ को इस दश्त में फिर लौट के आना नहीं है दिल-ए-दीवाना कुछ ऐसा भी दिवाना नहीं है बार बार आता है उस शख़्स से मिलने का ख़याल क्या करूँ पास मिरे कोई बहाना नहीं है दाम सय्याद ने हर सम्त बिछा रक्खे हैं और देखो तो कहीं एक भी दाना नहीं है कश्तियाँ हम ने भी साहिल पे जला डाली हैं अब कहीं और यहाँ से हमें जाना नहीं है चाहता हूँ कि तमन्नाएँ हों पूरी उस की पास मेरे तो मगर कोई ख़ज़ाना नहीं है