मुझ को लिपटा कर समुंदर रो पड़ा सब ने समझा आज पत्थर रो पड़ा जैसे बटवारे से वो भी ख़ुश न था फूट कर मेरा सहोदर रो पड़ा घर पहुँच कर उस ने दी वर्दी उतार हँस चुका बाहर तो अंदर रो पड़ा देखने वालों ने पहचाना नहीं सूँघ कर मुझ को मिरा घर रो पड़ा मैं उसे रोता समझ कर खिल उठा वो मुझे हँसता समझ कर रो पड़ा डूबने वाले ने जाने क्या कहा रेत पर बैठा शनावर रो पड़ा