मुझ को तुम से है ज़माने से सरोकार नहीं मैं तुम्हारा हूँ ज़माने का गुनहगार नहीं हुस्न की ख़ू है जफ़ा इश्क़ की फ़ितरत है वफ़ा मैं भी मुख़्तार नहीं आप भी मुख़्तार नहीं उस गुनहगार से इक़रार-ए-गुनह जो कर ले बे-नियाज़ी तिरी रहमत की सज़ा-वार नहीं काश उन लोगों को नज़दीक से देखे दुनिया जिन को अब तक ये समझती है गुनहगार नहीं उन की यादों ने हमें छीन लिया है हम से अपनी राहों में 'निहाल' अब कोई दीवार नहीं