मुझ से बिछड़ी मेरी परछाई किसे आवाज़ दूँ तू बता ऐ दौर-ए-तन्हाई किसे आवाज़ दूँ जब मुझे सन्नाटों ने भी दी नहीं कोई सदा तब मिरी ख़ामोशी चिल्लाई किसे आवाज़ दूँ इन अँधेरों को बताती है ये दुनिया रौशनी ऐसे में ऐ चश्म-ए-बीनाई किसे आवाज़ दूँ अब घड़ी है फ़ैसले की और है ये कश्मकश दिल सुनेगा या कि दानाई किसे आवाज़ दूँ ज़ुल्म इस दर्जा बड़े हैं दर्द भी हैं ला-दवा ख़ौफ़ में है ख़ुद मसीहाई किसे आवाज़ दूँ ज़िंदगी तेरे सफ़र में रोटियों के वास्ते छूटता है गाँव आबाई किसे आवाज़ दूँ इस ज़वाल-ए-अंजुमन में 'आरज़ू' तू ही बता किस को कह दूँ बज़्म-आराई किसे आवाज़ दूँ