रह गए बस इश्क़ दरिया से ये नाते रह गए हम सदफ़-आँखों से अब गौहर लुटाते रह गए रह गए हम साज़-ए-दिल के टूट जाने पर भी ख़ुश दर्द ग़ज़लों में छुपा कर गुनगुनाते रह गए रह गए हम प्यार के हर इस्म से दे कर सदा रूठ कर वो चल दिए और हम मनाते रह गए रह गए ख़ामोश वो भी इश्क़ के इज़हार पर मेरे लब पर भी इशारे आते आते रह गए रह गए सारे फ़सानों में निशाँ उन के ही और राज़-ए-दिल हम इस ज़माने से छुपाते रह गए रह गए यूँ तो अंधेरे हिज्र के दिल में मगर वस्ल की इक शम्अ हम फिर भी जलाते रह गए रह गए हम 'आरज़ू' दिल की दबा कर दिल में ही नक़्श-ए-पा उन की तमन्ना के मिटाते रह गए