मुक़र्रर वक़्त से पहले समझदारी नहीं आती

मुक़र्रर वक़्त से पहले समझदारी नहीं आती
न आनी हो किसी को गर तो फ़नकारी नहीं आती

झुकाना सीखना पड़ता है सर लोगों के क़दमों में
यूँही जम्हूरियत में हाथ सरदारी नहीं आती

चलाते हैं अगर तलवार ये तो क्या तअ'ज्जुब है
करेंगे और क्या जिन को क़लम-कारी नहीं आती

सियासी आँधियों से आग लगनी ग़ैर-मुमकिन थी
कहीं से उड़ के मज़हब की जो चिंगारी नहीं आती

क्यूँ बढ़ती जा रही है भूक दौलत की ज़माने में
तबीबों की समझ इक ये भी बीमारी नहीं आती

सभी से हम अदब से और हँस के बात करते हैं
हमें इस से ज़ियादा बस अदाकारी नहीं आती

बुझाना भूल जाएँ कैसे जलती बत्तियाँ घर की
हमारे घर ऐ हाकिम बिजली सरकारी नहीं आती

तिरी बेबाकियाँ 'जानिब' यही तस्दीक़ करती हैं
हर इक इंसान को दुनिया में हुश्यारी नहीं आती


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