मुख़्तसर वक़्त है पर बातें कर ज़िंदगी बीच सफ़र बातें कर आ कभी हुजरा-ए-दिल में मेरे रात के पिछले पहर बातें कर चल चला जाऊँ तुझे ले कर मैं फिर किसी ख़्वाब-नगर बातें कर छोड़ कर दुनिया-ओ-दीं की बातें है तो दुश्वार मगर बातें कर लम-यज़ल शे'र की सूरत तू भी मसनद-ए-दिल पे उतर बातें कर ज़िंदगी रक़्स में है मेरी जाँ बैठ जा शोर न कर बातें कर तेरे एहसास को तस्वीर करूँ अब तो काग़ज़ पे उभर बातें कर गुफ़्तुगू तुझ से करूँ ऐसे में खुलने लगता है हुनर बातें कर बात का इज़्न दिया जब उस ने फिर तुझे किस का है डर बातें कर तेरी तकमील हुआ चाहती है चाक से अब तू उतर बातें कर