मुमकिन है कहाँ बरसों तलक शाद रहें हम दुनिया तो चाहती है कि बर्बाद रहें हम हम मुहर-ब-लब ज़ुल्म-ओ-सितम पर रहें कब तक कब तक हदफ़-ए-नावक-ए-बेदाद रहें हम तारीख़ बदलनी है तो फिर कैसा तरद्दुद ये बात अलग चंद ही अफ़राद रहें हम कुछ ऐसा कोई काम करें रू-ए-ज़मीं पर लोगों को हमेशा के लिए याद रहें हम मिलना तो बहुत दूर है लेकिन ता-क़यामत इम्काँ है कि इस मुल्क में आबाद रहें हम मुस्तक़बिल-ए-इंसाँ का तक़ाज़ा है ये 'जौहर' कि एक नई नस्ल की बुनियाद रहें हम