जाह-ओ-हशमत नहीं जलाल नहीं फिर भी छेड़े कोई मजाल नहीं इज़्ज़त-ए-नफ़्स सब को प्यारी है फ़र्द या क़ौम का सवाल नहीं हाँ वो बेहद हसीं सही लेकिन बज़्म-ए-आलम में बे-मिसाल नहीं कैसे शिकवे गिले कि मुद्दत से हिज्र ही हिज्र है विसाल नहीं मेरी हस्ती वजूद रखती है मैं किसी ज़ेहन का ख़याल नहीं अपने माज़ी पे सिर्फ़ नाज़ करे इतना गुज़रा हुआ भी हाल नहीं अपने फ़न के दिखाइए 'जौहर' शेर कहना कोई कमाल नहीं