मुमकिन मुझे जो हो बे-रिया हो मसनद हो कि इस में बोरिया हो जब क़ाबिल-ए-दीद दिल-रुबा हो अल्लाह करे कि बा-वफ़ा हो भेजा नहीं ख़त-ए-शौक़ कब से मालूम हुआ कि तुम ख़फ़ा हो बे-ताबी-ए-दिल अगर दिखाऊँ कोई न किसी का मुब्तला हो मरता है ज़र पे अहल-ए-दुनिया नामर्द को कब ख़्वाहिश-ए-तिला हो मिट्टी कर दे जो आप को तो नज़रों में ख़ाक कीमिया हो आई है फ़स्ल-ए-गुल चमन में ऐ होश-ओ-ख़िरद चलो हवा हो क्या मुझे दर-ब-दर फिराया ऐ ख़्वाहिश-ए-दिल तिरा बुरा हो दिखलाई तू ने यार की शक्ल ऐ जज़्बा-ए-दिल तिरा भला हो लिपटो मुझे आ के हिज्र की शब ऐ गेसू-ए-यार अगर बला हो ऐ 'मुंतही' बज़्म-ए-यार का हाल क्या जानिए बा'द मेरे क्या हो