मुमकिन न थी जो बात वही बात हो गई दरिया मुझे मिला तो मिरी प्यास खो गई जब तक तुम्हारा ज़िक्र रहा जागती रही फिर वो हसीन रात भी महफ़िल में सो गई साया तुम्हारी याद का अब मेरे साथ है दुनिया तो इक नदी थी समुंदर में खो गई तेरा ख़याल आया तो महसूस ये हुआ ख़ुशबू तिरे बदन की मिरे साथ हो गई शायद ये रात आप से मिलने की रात है ख़ुश-रंग चाँदनी दर-ओ-दीवार धो गई तेरे हसीं ख़याल की ख़ुशबू फ़ज़ा में थी बारिश गुलाब-जल की हमें भी भिगो गई 'असरार' उन के ग़म ने भी रौशन किए चराग़ पलकों में इक ख़ुशी भी सितारे पिरो गई