मुन्फ़इल था तिरा जल्वा क्या क्या हम ने समझा तिरा मंशा क्या क्या एक था लफ़्ज़-ए-मोहब्बत जिस से मसअले हो गए पैदा क्या क्या तू ही ख़ुद देख कि तेरे लिए काम मर गया हर्फ़-ए-तमन्ना क्या क्या कौन जाने कि तुझे बिन देखे तुझ से मिलता है सहारा क्या क्या जब न देखा उन्हें देखा ही नहीं जब भी देखा उन्हें देखा क्या क्या किस को समझाएँ कि उस महफ़िल में कैसे होता है तक़ाज़ा क्या क्या किस क़दर सख़्त मक़ाम आए थे हम ने रक्खा तिरा पर्दा क्या क्या हम जो दीवाने नहीं हो जाते देखते लोग तमाशा क्या क्या आज था रौनक़-ए-महफ़िल 'आली' तुम न होते तो वो पढ़ता क्या क्या