मुँह छुपाए हुए भटकेगी हवा मेरे बाद साज़ हो जाएगी सहरा की सदा मेरे बाद साफ़ आते हैं नज़र जिस में सभी के चेहरे आइने पर न रहेगी वो जिला मेरे बाद बे-लिबासी ही मुक़द्दर था मगर हम-नफ़सो तन छुपाने को मिली तुम को रिदा मेरे बाद मेरे अल्फ़ाज़ को तावीज़ बना कर रख लो वर्ना उठ जाएगी दुनिया से वफ़ा मेरे बाद 'साक़ी' इस आस पे कुछ कहने की हिम्मत की है काश दोहराए कोई मेरा कहा मेरे बाद