मुँह खोल के दिल की बात कही कब उन से परेशाँ-हालों ने हाँ आधी आधी रात गए जा जा के सताया नालों ने अब सब की ज़बाँ से सुन लीजे ख़ल्वत का बयाँ जल्वत का बयाँ उफ़ क्या क्या राज़ न फ़ाश किए आग़ोश-ए-जुनूँ के पालों ने इस दिल को राह-ए-मोहब्बत में जिस जिस ने पाया लूट लिया इक तुम ही नहीं सब ने ये किया ख़ारों ने गुलों ने लालों ने आँखों पे लटों का झुक आना तासीर-ए-नज़र का बढ़ जाना अमृत के कटोरों में आख़िर कुछ ज़हर मिलाया कालों ने फ़रहाद गया मजनूँ न रहा इक 'रिज़वी' है अल्लाह रखे कुछ बात वफ़ा की रख ली है इन चंद परेशाँ-हालों ने