मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई आप आए भी तो कुछ बात न होने पाई दिल भर आया भी तो आँखों से न टपके आँसू अब्र छाया भी तो बरसात न होने पाई आप से मिल के भी अक्सर यही महसूस हुआ आप से गोया मुलाक़ात न होने पाई हम ने जीते हुए देखा तो है दिल वालों को पर अयाँ सूरत-ए-हालात न होने पाई 'सोज़' हर रोज़ हुई रात मगर हिज्र की रात वस्ल की रात कोई रात न होने पाई