मुंसलिक हो कर तुम्हारे नाम से मुतमइन हूँ गर्दिश-ए-अय्याम से बन गए मेरे लिए इल्ज़ाम से जो पयाम आए तुम्हारे नाम से है तसव्वुर में तिरे गेसू की छाँव नींद आई है बड़े आराम से जिन की तहरीरों से पहचाना गया कुछ ख़ुतूत ऐसे भी थे गुमनाम से आज तन्हा आप ही रुस्वा नहीं हो गए हैं हम भी कुछ बदनाम से तेरे आने की ख़बर के बावजूद किस क़दर बे-ताबियाँ हैं शाम से कुछ कसर मरने में बाक़ी ही न थी जी उठा 'बिस्मिल' तिरे पैग़ाम से