मुसलसल इक जहान-ए-रंग-ओ-बू है जिधर देखा उधर बस तू ही तू है कोई मुझ को भी नामूस-ए-वफ़ा दे मिरी दुनिया बड़ी बे-आबरू है अभी ग़म का नहीं उल्फ़त में इरफ़ाँ अभी मंज़िल की मुझ को जुस्तुजू है मुझे इक बार देखा था किसी ने अभी तक हर सू उस की गुफ़्तुगू है बहुत ऐसे हैं जो फ़िरऔन-ए-फ़न हैं मगर उन की हक़ीक़त हा-ओ-हू है