क़िस्मत असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर हो गई ज़ुल्मत में घिर के महवर-ए-तनवीर हो गई मंज़र था दिल-फ़रेब लब-ए-जू का शाम को फिर क्यों जनाब आने में ताख़ीर हो गई महके गुलाब छाई घटा छिटकी चाँदनी कैसी जमाल-ए-यार की तफ़्सीर हो गई उस का अजब मिज़ाज है छोटी सी बात पर अबरू बने कमान नज़र तीर हो गई 'अंजुम' ख़ुदा के फ़ज़्ल से मुझ कम-सवाद की अर्बाब-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल में तश्हीर हो गई