ब'अद-ए-मुर्दन की भी तदबीर किए जाता हूँ अपनी क़ब्र आप ही तामीर किए जाता हूँ चैन मुतलक़ नहीं पड़ता शब-ए-हिज्राँ में मुझे सुब्ह तक नाला-ए-शब-गीर किए जाता हूँ अफ़्व पर अफ़्व की रेज़िश है उधर से हर दम और मैं तक़्सीर पे तक़्सीर किए जाता हूँ उस के कूचे में जो देखेगा करेगा मुझे याद अपनी सूरत की मैं तस्वीर किए जाता हूँ उठ के ता-कूचा-ए-लैला से न जावे ये कहीं पाँव में क़ैस के ज़ंजीर किए जाता हूँ कोई ले जाए इसे या कि न ले जाए प मैं नामा-ए-शौक़ की तहरीर किए जाता हूँ उस का क्या जुर्म मिरे होश गए हैं कैसे जो अलम ग़ैर पे शमशीर किए जाता हूँ पेश जाती नहीं यूँ भी मिरी उस से हर-चंद शर्र-ओ-मक्र-ओ-फ़न-ओ-तज़वीर किए जाता हूँ नक़्श-ए-हुब चाल से निकल है मिरी इस ख़ातिर मैं परी-ज़ादों की तस्ख़ीर किए जाता हूँ 'मुसहफ़ी' यार तू सुनता नहीं और वहशी सा हाल की अपने मैं तक़रीर किए जाता हूँ