याद तो आए कई चेहरे हर इक गाम के बा'द कोई भी नाम कहाँ आया तिरे नाम के बा'द दश्त-ओ-दरिया में कभी गुलशन-ए-सहरा में कभी मैं रहा महव-ए-सफ़र इक तिरे पैग़ाम के बा'द गामज़न राह-ए-जुनूँ पर हैं तो फिर सोचना क्या किसी अंजाम से पहले किसी अंजाम के बा'द दिल का हर काम फ़क़त उस की नज़र करती है नाम आता है मगर मेरा हर इल्ज़ाम के बा'द मेरी बे-ताबी-ए-दिल मेरा मुक़द्दर ठहरी शब-ए-आलाम से पहले शब-ए-आलाम के बा'द काम लेता है मुझी से वो मुसीबत में सदा भूल जाता है मगर मुझ को मिरे काम के बा'द बारहा उस ने मिरा नाम मिटाया 'अंजुम' रो पड़ा फिर वो हर इक बार इसी काम के बा'द