उम्र गुज़री है इल्तिजा करते क़िस्सा-ए-ग़म लब-आश्ना करते जीने वाले तिरे बग़ैर ऐ दोस्त मर न जाते तो और क्या करते हाए वो क़हर-ए-सादगी-आमेज़ काश हम फिर उन्हें ख़फ़ा करते रंग होता कुछ और दुनिया का शैख़ मेरा अगर कहा करते आप करते जो एहतिराम-ए-बुताँ बुत-कदे ख़ुद ख़ुदा ख़ुदा करते रिंद होते जो बा-शुऊर 'अनवर' क्या बताऊँ तुम्हें वो क्या करते