मुसीबत जिस से ज़ाइल हो रही सामान कर देगा न घबराना ख़ुदा सब मुश्किलें आसान कर देगा ख़राबात-ए-जहाँ में कौन है दिल-सोज़ साक़ी सा अगर तरछट भी देना है तो तुझ को छान कर देगा क़नाअत की भी दौलत हो तो इस्तिग़्ना नहीं लाज़िम जिसे तू नफ़अ' समझा है यही नुक़सान कर देगा जगह दिल में न दे शौक़-ए-नुमू-दारी बुरी शय है यही चसका तुझे बर्बाद ऐ नादान कर देगा कहूँगा आज से मैं साहिब-ए-एजाज़ नासेह को अगर मेरे दिल-ए-मुज़्तर का इत्मीनान कर देगा तमन्नाओं की मेहमानी तसव्वुर के हवाले कर कि जो सामाँ मुनासिब है वही सामान कर देगा मता-ए-बे-बहा से कम न जान ऐ चश्म अश्कों को यही रोना तिरा ख़ाली तिरी दूकान कर देगा कोई गर सल्तनत भी दे तो वापस कर न ले ऐ दिल सुबुक हर तर्फ़ तुझ को ग़ैर का एहसान कर देगा कहे देता हूँ क़ातिल ले ख़बर जाँ-बाज़ की अपने फ़ना शौक़-ए-शहादत में किसी दिन जान कर देगा तिरी रू-पोशियाँ ऐ हुस्न कब बे-कार जाएँगी यही पर्दा अयाँ आलम में तेरी शान कर देगा यक़ीं कर ले कि ख़ुद वो जल्वा-गर पर्दे में है वर्ना यही ज़ालिम गुमाँ तेरा तुझे हैरान कर देगा ग़ज़ल से क्या मुराद ऐ 'शाद' है अर्बाब-ए-मा'नी की किसी दिन तसफ़िया उस का मिरा दीवान कर देगा