मुसीबत का ये लम्हा काटना है मुझे औरों से अच्छा काटना है दरांती फ़िक्र की पैनी करूँगा मुझे मिसरे को थोड़ा काटना है अभी मैदान से बाहर न होंगे हमें कुछ दिन तो जल्वा काटना है ग़नीम-ए-मुल्क से जीतेंगे हम ही ज़रा इक आध दस्ता काटना है बिछड़ कर उस से ज़िंदा हूँ अभी तक अज़िय्यत का ये वक़्फ़ा काटना है अमल के नित-नए तेशे बना कर मुझे क़िस्मत का लिक्खा काटना है बुरा तो काट लेंगे वक़्त तन्हा तुम्हारे साथ अच्छा काटना है मैं उस से मुस्कुरा कर ही मिलूँगा ख़ुशी से आज ग़ुस्सा काटना है अना की तेग़ को कुछ तेज़ कर लो फकीरो तुम को रुत्बा काटना है हमारा इश्क़ हो पाया न कामिल सो अब औरों का पत्ता काटना है