लखनऊ शहर में सब कुछ है दिल-आवेज़ यहाँ फ़िक्र 'हर्षित' की हुई और भी ज़रख़ेज़ यहाँ उन की तकमील न हो पाई अलग बात मगर किस की आँखें न हुईं ख़्वाब से लबरेज़ यहाँ उस ने तख़्लीक़-ए-सुख़न के लिए बख़्शा है क़लम हम भी करते नहीं तन्क़ीद से परहेज़ यहाँ शेर कहना भी तो मुश्किल है तिरे हिज्र के बाद पेन कहीं बक्स कहीं लैम्प कहीं मेज़ यहाँ वहशतें नाच रही हैं यहाँ चारों जानिब शहर का शहर ही लगता है जुनूँ-ख़ेज़ यहाँ हम से सँभलेंगे नहीं आप की तारीफ़ के पुल और चलती हैं हवाएँ भी बहुत तेज़ यहाँ