मुसीबत सर से टलती जा रही है हमारी उम्र ढलती जा रही है कहाँ है ज़िंदगी अब ज़िंदगी में फ़क़त इक नब्ज़ चलती जा रही है मुसलसल भाप बन कर उड़ रहा हूँ मुसलसल आग जलती जा रही है अजब है सानेहा जीने की ख़्वाहिश मिरे दिल से निकलती जा रही है ख़फ़ा क्यों हैं मिरे हालात मुझ से हवा क्यों रुख़ बदलती जा रही है ये साँसें मो'जिज़े में ढल रही हैं करामत ख़ूँ में चलती जा रही है सवा नेज़े पे सूरज आ रहा है मिरी हर सम्त गलती जा रही है मुझे धर कर मेरे बे-दर मकाँ में वो घर को हाथ मलती जा रही है ये कैसे डंक हैं सीने में 'ताहिर' हलक़ में जाँ उछलती जा रही है