मुस्कुरा सकता नहीं आँसू बहा सकता नहीं ज़िंदगी अब मैं तिरे एहसाँ उठा सकता नहीं जो शिकस्त-ए-आरज़ू पर मुस्कुरा सकता नहीं ज़िंदगी की अज़्मतों का राज़ पा सकता नहीं तालिबान-ए-रंग-ओ-बू काँटों से दामन-कश न हों शाख़-ए-गुल तक यूँ किसी का हाथ जा सकता नहीं तुझ से मिल कर जाने क्यूँ होता है ये मुझ को गुमाँ तुझ को खो सकता हूँ लेकिन तुझ को पा सकता नहीं मुतमइन हूँ मैं कि ज़िंदा है मिरी तब-ए-ग़यूर मेरी ख़ुद्दारी पे कोई हर्फ़ आ सकता नहीं शम-ए-गिर्यां को भला क्या अज़मत-ए-ग़म की ख़बर कोई परवाना कभी आँसू बहा सकता नहीं तुझ से मिलने की तमन्ना है कि तुझ से रह के दूर ए'तिबार-ए-हस्ती-ए-मौहूम आ सकता नहीं 'लैस' मैं रखता हूँ पहलू में दिल-ए-दर्द-आश्ना भूल कर भी मैं किसी का दिल दुखा सकता नहीं