मुस्कुराते थे जो मेरा चाक-दामाँ देख कर आज शर्मिंदा हैं वो अपना गरेबाँ देख कर आरज़ू-ए-दीद दिल की दिल में आख़िर रह गई महव-ए-हैरत हो गया तस्वीर-ए-जानाँ देख कर किस क़दर बदली है दुनिया ने मोहब्बत की रविश फेर लेता है नज़र इंसाँ को इंसाँ देख कर आए थे तस्कीन देने वो दिल-ए-बेताब को ख़ुद परेशाँ हो गए मुझ को परेशाँ देख कर चूमती हैं मंज़िलें ख़ुद अहल-ए-हिम्मत के क़दम हौसला मत हार जाना ज़ोर-ए-तूफ़ाँ देख कर वा-ए-क़िस्मत वो तो मेरा ही जला था आशियाँ ख़ुश हुआ था मैं गुलिस्ताँ में चराग़ाँ देख कर 'नूर' अंदाज़ा बहारों का लगा लेते हैं सब मेरा दामाँ देख कर मेरा गिरेबाँ देख कर