न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं ये ज़ालिम लोग भी इंसानियत का दर्द रखते हैं मुझे शक है कि तुम तीरा शबों में कैसे निकलोगे चटानें काटने का हौसला तो मर्द रखते हैं मोहब्बत करने वालों की तुम्हें पहचान बतलाऊँ दिलों में आग के बा-वस्फ़ सीना सर्द रखते हैं हवा ने अहल-ए-सहरा को अजब मल्बूस बख़्शा है सरों पर लोग पगड़ी के बजाए गर्द रखते हैं उसे देखा तो चेहरा ढाँप लोगे अपने हाथों से हम अपने साथियों में 'राम' ऐसा फ़र्द रखते हैं