न आप आए न बेदाद-ए-इंतिज़ार गई ये रात फिर मिरी आँखों से आज हार गई लिए हुए कोई अफ़्साना-ए-बहार गई सबा चमन से बहुत आज सोगवार गई हुई जो सुब्ह तो अश्कों से जगमगा उट्ठी जो आई शाम तो यादों से मुश्क-बार गई इसी निगाह ने मारा अलम-परस्तों को वही निगाह मिरी ज़िंदगी सँवार गई ज़मीन-ए-कू-ए-मलामत भी ख़ैर राह में थी कहाँ कहाँ लिए मौज-ए-ख़िराम-ए-यार गई