कुछ रूप-नगर का ज़िक्र करो कुछ रंग-महल की बात करो रंगीन फ़ज़ा है महफ़िल की रंगीन ग़ज़ल की बात करो रिंदों को न अब टालों कल पर रिंदों से न कल की बात करो तुम आज हमारे साक़ी हो तुम आज न हल्की बात करो है सुब्ह-ए-बनारस रूप उस का तो शाम-ए-अवध गेसू उस के वो मेरी ग़ज़ल है मेरी ग़ज़ल तुम मेरी ग़ज़ल की बात करो तक़रीर की लज़्ज़त बे-मा'नी तहरीर की नुदरत ला-हासिल ये फ़िक्र-ओ-अमल की है दुनिया कुछ फ़िक्र-ओ-अमल की बात करो बैठे हो 'अज़ीज़' अपने ऐसे अहबाब की रंगीं महफ़िल में तौबा के तसव्वुर से पहले ईमाँ के ख़लल की बात करो