न आसमाँ में ज़मीं में न काएनात में है वो हुस्न जो कि अज़ल ही से तेरी ज़ात में है ये रंग-ओ-नूर ये ख़ुशबू ये मौज-हा-ए-बहार मसर्रतों का ख़ज़ाना रह-ए-हयात में है छुपा न पाएगा कोई भी मुझ से राज़-ए-हयात कि आइना ग़म-ए-दौराँ का मेरे हाथ में है जो राग सिर्फ़ था महदूद मेरी ज़ात तलक वो बन के एक तराना सा काएनात में है ज़मीन-बोस अभी होगा फ़िक्र-ओ-फ़न का महल इक इंतिशार सा दुनिया-ए-बे-सबात में है ये आदमी का है जंगल ज़रा सँभल के चलो यहाँ तो नाग हवस का तुम्हारी घात में है बदल ही जाएगी 'जामी' तुम्हारी तर्ज़-ए-कलाम इक इंक़लाब की ख़ुशबू तुम्हारी बात में है