न छेड़ ज़ाहिद-ए-नादाँ शराब पीने दे शराब पीने दे ख़ाना-ख़राब पीने दे अभी से अपनी नसीहत का ज़हर दे न मुझे अभी तो पीने दे और बे-हिसाब पीने दे मैं जानता हूँ छलकता हुआ गुनाह है ये तू इस गुनाह को बे-एहतिसाब पीने दे फिर ऐसा वक़्त कहाँ हम कहाँ शराब कहाँ तिलिस्म-ए-दहर है नक़्श-ए-बर-आब पीने दे मिरे दिमाग़ की दुनिया का आफ़्ताब है ये मिला के बर्फ़ में ये आफ़्ताब पीने दे किसी हसीना के बोसों के क़ाबिल अब न रहे तो इन लबों से हमेशा शराब पीने दे समझ के उस को ग़फ़ूर-उर-रहीम पीता हूँ न छेड़ ज़िक्र-ए-अज़ाब-ओ-सवाब पीने दे जो रूह हो चुकी इक बार दाग़-दार मिरी तो और होने दे लेकिन शराब पीने दे शराब-ख़ाने में ये शोर क्यूँ मचाया है ख़मोश 'अख़्तर'-ए-ख़ाना-ख़राब पीने दे