न छेड़ शाइर रबाब-ए-रंगीं ये बज़्म अभी नुक्ता-दाँ नहीं है तिरी नवा-संजियों के शायाँ फ़ज़ा-ए-हिन्दोस्ताँ नहीं है तिरी समाअत निगार-ए-फ़ितरत के लहन की राज़-दाँ नहीं है वगरना ज़र्रा है कौन ऐसा कि जिस के मुँह में ज़बाँ नहीं है अगरचे पामाल हैं ये बहरें मगर सुख़न है बुलंद हमदम न दिल में लाना गुमान-ए-पस्ती मिरी ज़मीं आसमाँ नहीं है ज़मीर-ए-फ़ितरत में पुर-फ़िशाँ है चमन की तरतीब-ए-नौ का अरमाँ ख़िज़ाँ जिसे तो समझ रहा है वो दर-हक़ीक़त ख़िज़ाँ नहीं है हरीम-ए-अनवार-ए-सरमदी है हर एक ज़र्रा ब-रब्ब-ए-काबा मिरा ये ऐनी मुशाहेदा है फ़रेब-ए-वहम-ओ-गुमाँ नहीं है हर एक काँटे पे सुर्ख़ किरनें हर इक कली में चराग़ रौशन ख़याल में मुस्कुराने वाले तिरा तबस्सुम कहाँ नहीं है फ़लक से हंगाम-ए-शेर-गोई सदाएँ पैहम ये आ रही हैं कि आज ऐ 'जोश' नुक्ता-परवर तिरा सा जादू बयाँ नहीं है