न दिल की बेबसी देखी न आँखों की ज़बाँ समझे

न दिल की बेबसी देखी न आँखों की ज़बाँ समझे
मिरे शिकवे को तुम भी सिर्फ़ अंदाज़-ए-बयाँ समझे

मोहब्बत और कोई बात सुनने ही नहीं देती
किसी की गुफ़्तुगू निकली हम उन की दास्ताँ समझे

हमारे दिल से उठता है धुआँ बिजली कहीं टूटे
चमन के गोशे गोशे को हम अपना आशियाँ समझे

मोहब्बत में न दामन का भरोसा है न अश्कों का
उसी ने राज़-ए-दिल खोला जिसे हम राज़-दाँ समझे

उन्हें बरसों में जब देखा तो रोना आ गया दिल को
बहुत चाहा कि थम जाएँ मगर आँसू कहाँ समझे

ग़ज़ल कहने में ऐ 'मसरूर' रातें बीत जाती हैं
समझती है जो दुनिया शाइरी को राएगाँ समझे


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