न गया ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह जफ़ा-शआराँ न हुआ कि सुब्ह होवे शब-ए-तीरा रोज़गाराँ न कहा था ऐ रफ़ूगर तिरे टाँके होंगे ढीले न सिया गया ये आख़िर दिल-ए-चाक-ए-बे-क़राराँ हुई ईद सब ने पहने तरब-ओ-ख़ुशी के जामे न हुआ कि हम भी बदलें ये लिबास-ए-सोगवाराँ ख़तर अज़ीम में हैं मिरी आह-ओ-अश्क से सब कि जहान रह चुका फिर जो यही है बाद-ओ-बाराँ कहीं ख़ाक-ए-कू को उस की तू सबा न दीजो जुम्बिश कि भरे हैं इस ज़मीं में जिगर जिगर-फ़िगाराँ रखे ताज-ए-ज़र को सर पर चमन ज़माना में गिल न शगुफ़्ता हो तू इतना कि ख़िज़ाँ है ये बहाराँ नहीं तुझ को चश्म-ए-इबरत ये नुमूद में है वर्ना कि गए हैं ख़ाक में मिल कई तुझ से ताज-दाराँ तू जहाँ से दिल उठा याँ नहीं रस्म-ए-दर्दमंदी किसी ने भी यूँ न पूछा हुए ख़ाक याँ हज़ाराँ ये अजल से जी छुपाना मिरा आश्कार हैगा कि ख़राब होगा मुझ बिन ग़म-ए-इश्क़ गुल-अज़ाराँ ये सुना था 'मीर' हम ने कि फ़साना ख़्वाब ला है तिरी सर-गुज़श्त सुन कर गए और ख़्वाब याराँ