उस गली में जो हम को लाए क़दम पाँव पड़ते ही लड़खड़ाए क़दम वाए क़िस्मत मैं रह गया पीछे और रफ़ीक़ों ने जल्द उठाए क़दम हर क़दम पर है लाश कुश्ते की अब कहाँ उस गली में जाए क़दम तेरे कूचे से आए जो उन के अपनी आँखों से मैं लगाए क़दम अश्क-ए-ख़ूनी से मेरे उस कू मैं नख़्ल-ए-मर्जां हैं नक़्श-हा-ए-क़दम कारवान-ए-अदम किधर को गया मुतलक़ आती नहीं सदा-ए-क़दम पेशतर मंज़िल-ए-फ़ना से नहीं वादी-ए-मा-ओ-मन में जाए क़दम 'मुसहफ़ी' सालिकान-ए-इश्क़ का है ऐसी मंज़िल पे इंतिहा-ए-क़दम