न हम-नवा मिरे ज़ौक़-ए-ख़िराम का निकला ये रास्ता भी उसी नर्म-गाम का निकला नए गुलों की सदा-ए-शगुफ़्त तेज़ हुई हवा के लम्स से रिश्ता कलाम का निकला मुसव्विरी न सही काम आई बे-हुनरी कोई बहाना तो उन से सलाम का निकला तलाश-ए-रिज़्क़ में निकले थे महर-ए-सुब्ह लिए अक़ब से पहला सितारा भी शाम का निकला यहाँ भी धूप चली आई बे-ख़याली की ये साएबान-ए-तसव्वुर न काम का निकला मुसाहिबों की तरह हर क़दम पे ख़ार मिले मिरा सफ़र तो बड़े एहतिमाम का निकला वही शजर वही पत्ते वही हवा वही आग कलाम-ए-नौ भी मिरा रंग-ए-आम का निकला