न हो जिस को किसी का ग़म उसे कहिए तो क्या कहिए जो सुन कर हाल हो बरहम उसे कहिए तो क्या कहिए सबब होवे तो कीजे तर्क कहिए बे-सबब यारो ख़फ़ा होता हो जो हर दम उसे कहिए तो क्या कहिए भली कर के कहें उस से तो वो माने बुरा उल्टा जो शीरीनी को समझे सम उसे कहिए तो क्या कहिए नशे में रात दिन मख़मूर रहता है वो ग़ैरों में है उस का और ही आलम उसे कहिए तो क्या कहिए मज़ा कहने का ये है इक कहे और दूसरा माने जो हो हर बात में बरहम उसे कहिए तो क्या कहिए समझ अच्छे बुरे की हो तो कुछ कहना भी लाज़िम है हो यकसाँ जिस की मदह-ओ-ज़म उसे कहिए तो क्या कहिए ज़बानी हाल क़ासिद से भला हम 'ऐश' क्या कहते जो होवे शख़्स-ए-ना-महरम उसे कहिए तो क्या कहिए