न होगा मसअला हल बरहमी से कभी तो हम से मिलिए सादगी से बहुत सी ख़ूबियाँ हैं तुझ में लेकिन मैं घबराता हूँ तेरी दोस्ती से जो हर हालत में ख़ुश रहने लगा है मुझे मिलना है ऐसे आदमी से मुझे तन्हा न करना दोस्तों से बहुत चाहत है मुझ को ज़िंदगी से ज़ियादा रौशनी रास आई किस को मिरा सब कुछ है घर की रौशनी से अगरचे चलते चलते तक गया हूँ मुझे मिलना है 'नश्तर' आप ही से