न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था ख़ुदा जाने कहाँ मरता था मैं जब तू अकेला था घरौंदा यूँ खड़ा तो कर लिया है आरज़ूओं का तमाशा है जो वो कह दें कि मैं इक खेल खेला था बहुत सस्ते छुटे ऐ मौत बाज़ार-ए-मोहब्बत में ये सौदा वो है जिस में क्या कहें क्या क्या झमेला था अगर तक़दीर में होता तो इक दिन पार भी लगता ये दरिया झेलने को यूँ तो ऐ दिल ख़ूब झेला था हमेशा हसरत-ए-दीदार पे दिल ने क़नाअत की बड़े दर का मुजाविर था बड़े मुर्शिद का चेला था कहाँ दिल और फ़ुसून-ए-इश्क़ की घातें कहाँ या रब न पड़ता था बलाओं में अभी कम-बख़्त अनीला था जहाँ चाहे लगे जिस दिल को चाहे चूर कर डाले ज़बाँ से फेंक मारा बात थी नासेह कि ढेला था तमाशा-गाह-ए-दुनिया में बताऊँ क्या उम्मीदों की तन-ए-तन्हा था मैं ऐ 'शाद' और रेलों पे रेला था