नालों की कशाकश सह न सका ख़ुद तार-ए-नफ़स भी टूट गया इक उम्र से थी तकलीफ़ जिसे कल शब को वो क़ैदी छूट गया थी तेरी तमन्ना काहिश-ए-जाँ इस दर्द से में दीवाना था छाला था दिल अपने सीने में ऐ वा-असफ़ा वो फूट गया सब अपनी ही अपनी धुन में फँसे तेरा तो न निकला काम कोई जो आया तिरे दरवाज़े पर वो अपना ही माथा कूट गया ताबूत पे मेरे आए जो मिट्टी में मिलाया यूँ कह कर फैला दिए दस्त-ओ-पा अपने इतने ही में बस जी छूट गया आया था यही दिल में मेरे रिंदों ही पे कली भी फेंकूँ साक़ी का इशारा पाते ही में ज़हर-ए-सितम को घूट गया हो हिंदू-ए-ख़ाल-ए-लब तेरा या तर्क-ए-निगह हो ऐ क़ातिल देहली था हमारा दिल शायद जो आया वो उस को लूट गया नाज़ुक था बहुत कुछ दिल मेरा ऐ 'शाद' तहम्मुल हो न सका इक ठेस लगी थी यूँ ही सी किया जल्द ये शीशा टूट गया