न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए ख़ुशी के इंतिज़ार में जो रोज़-ओ-शब गुज़र गए हर आने वाले शख़्स का दबाव मेरी सम्त था मैं रास्ते से हट गया तो सब के सब गुज़र गए मिरे लिए जो वक़्त का शुऊर ले के आए थे मुझे ख़बर ही तब हुई वो लम्हे जब गुज़र गए समुंदरों के साहिलों पे ख़ाक उड़ रही है अब जो तिश्नगी की आब थे वो तिश्ना-लब गुज़र गए मगर वो तेरे बाम-ओ-दर की अज़्मतों का पास था तिरी गली से बे-अदब भी बा-अदब गुज़र गए वफ़ूर-ए-इम्बिसात में किसे रहेंगे याद हम अगर जहान-ए-रंग-ओ-बू से बे-सबब गुज़र गए बजा है तेरा ये गिला कि मैं बहुत बदल गया दर-अस्ल मुझ पे हादसे ही कुछ अजब गुज़र गए कहीं कहीं तो राह भी ख़ुद एक सद्द-ए-राह थी मगर हम ऐसे सख़्त-जाँ ब-नाम-ए-रब गुज़र गए हुई न क़दर मेहर की ख़ुलूस राएगाँ गया रह-ए-वफ़ा से 'रश्क' हम वफ़ा-तलब गुज़र गए