न जाने कौन है क्या है कहाँ से आया है वो मेरा ऐन है या ख़्वाब है या धोका है न देख वक़्त यूँ मुझ को ये तेरा चेहरा है जो शख़्स मुझ में छुपा है वो कितना सादा है हवा के घुंघरू हैं साकित थकी थकी है शाम उदासियों का हर इक सम्त जाल फैला है फ़ज़ा में उड़ते परिंदों ने पर समेट लिए नुज़ूल-ए-शाम है और रास्ता अकेला है तमाम खेल हुआ दिन ढला चलो अब घर न जाने मुझ में उतरता ये दर्द कैसा है सियाह रात का पंछी है पँख फैलाए मगर दिलों में बहुत दूर तक उजाला है उसे भी साथ न मौज-ए-बला तो ले जाना यहीं पे मेरे सकूँ का जज़ीरा डूबा है गुज़िश्ता ज़ख़्मों के टाँके मस्कते जाते हैं किसी ने दूर बहुत दूर से पुकारा है 'शमीम' बीती रुतों की है चाँदनी फैली फ़सील-ए-शब से ख़यालों का चाँद उभरा है