न जाने कौन सा मंज़र नज़र से गुज़रा था कि मुद्दतों कोई सौदा-ए-सर से गुज़रा था फिर इस के ब'अद अना का शिकार हो बैठा मैं एक बार तिरी रह-गुज़र से गुज़रा था बसी हुई है महक तेरे पैरहन जैसी अभी अभी कोई झोंका उधर से गुज़रा था गुज़र सका न तिरे ज़ब्त के हिसार से जो वो सैल-ए-ग़म भी मिरी चश्म-ए-तर से गुज़रा था थके थके से वो बाज़ू वो फ़तह-मंद आँखें सफ़र तवील कोई बाल-ओ-पर से गुज़रा था मैं नक़्द-ए-जाँ लिए बैठा रहा मगर 'रौनक़' न जाने दुश्मन-ए-जानी किधर से गुज़रा था