जो कुछ कि तू ने सर पे मिरे दिलरुबा किया दिल ही वो जानता है कहूँ क्या मैं क्या किया मत पूछ आह-ए-इश्क़ के ख़ूबाँ के क्या किया रुस्वा किया ख़राब किया मुब्तला किया यारो कहे रखे हूँ मैं दा'वा न कीजियो क़ातिल को अपने मैं ने ब-हल ख़ूँ-बहा किया मुल्ज़िम किया है आह किसी ने मुझे ब-अक्स आईना-रू का अपने मैं जिस से गिला किया बन बैठता है मुफ़्त मिरे जी का मुद्दई' इज़हार उस से दिल का मैं जब मुद्दआ' किया बे-मेहरी तेरी क्या कहूँ ऐ संग-दिल कि चूर मुझ दिल का शीशा तू ने ब-संग-ए-जफ़ा किया उस बिन न क़िबला समझूँ न क़िबला-नुमा को मैं क़िबला उसे दिल अपने को क़िबला-नुमा किया मलता है ऐ निगार कफ़-ए-पा कूँ अपने आह क्या तू ने मेरे ख़ून को रंग-ए-हिना किया ये चश्म-दाश्त तुझ से 'जहाँदार' को न थी जो ग़ैर के लिए उसे तू ने जफ़ा किया