न जुनूँ जाएगा कभी मेरा यार है ग़ैरत-ए-परी मेरा दिल न ले ऐ सनम बरा-ए-ख़ुदा कुछ बहलता है इस से जी मेरा उस का हैरान हूँ जो कहता है देख ले मुँह न आरसी मेरा अब नहीं दिल को ताब फ़ुर्क़त की दम निकलता है ऐ परी मेरा लज़्ज़त-ए-क़त्ल क्या कहूँ क़ातिल चाटती है लहू छुरी मेरा जान-ए-जाँ ज़िक्र कर न जाने का दम निकल जाएगा अभी मेरा ग़ुंचा-ए-गुल तो हँस के कहता है मुँह चिढ़ाने लगी कली मेरा अब की फ़ुर्क़त में गर रहा जीता देखिएगा न मुँह कभी मेरा बे-निशाँ हों मिसाल अन्क़ा की नाम ऐ 'अर्श' तो सही मेरा