न कलियाँ मुस्कुराती हैं न फूलों पर निखार आए बड़ी बे-कैफ़ियों के साथ अय्याम-ए-बहार आए कोई क़ीमत नहीं ऐसे वफ़ा के अहद-ओ-पैमाँ की मुझे जिस पर यक़ीं आए न उन को ए'तिबार आए जहाँ के चप्पे चप्पे पर गुमाँ होता था मंज़िल का मिरी मंज़िल में ऐसे मरहले भी बे-शुमार आए हक़ीक़त उस के दिल से पूछिए जज़्ब-ए-मोहब्बत की समझ में जिस के मफ़्हूम-ए-निगाह-ए-शर्मसार आए निज़ाम-ए-गुलसिताँ ज़र्फ़-ए-तमन्ना से इबारत है तिरे दामन में फूल आए मिरे दामन में ख़ार आए मरीज़-ए-ग़म के लब पर नाम उन का बार बार आया फिर उस के बा'द चारासाज़ आए ग़म-गुसार आए 'नसीर' आया तवाफ़-ए-कू-ए-जानाँ रास कब दिल को तमन्ना-ए-सुकूँ ले कर गए और बे-क़रार आए