तर्क-ए-मोहब्बत अपनी ख़ता हो ऐसा भी हो सकता है वो अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो ऐसा भी हो सकता है दरवाज़े पर आहट सुन कर उस की तरफ़ क्यूँ ध्यान गया आने वाली सिर्फ़ हवा हो ऐसा भी हो सकता है हाल-ए-परेशाँ सुन कर मेरा आँख में उस की आँसू हैं मैं ने उस से झूट कहा हो ऐसा भी हो सकता है अर्ज़-ए-तलब पर उस की चुप से ज़ाहिर है इंकार मगर शायद वो कुछ सोच रहा हो ऐसा भी हो सकता है हद्द-ए-नज़र तक सिर्फ़ धुआँ था बर्क़ पे क्यूँ इल्ज़ाम रखें आतिश-ए-गुल से बाग़ जला हो ऐसा भी हो सकता है ख़ून बहाना उस का शेवा है तो सही 'मंज़ूर' मगर हाथ पे उस के रंग-ए-हिना हो ऐसा भी हो सकता है